Friday, November 15

अक्स-ए-ज़िन्दगी - १



ज़माने के दस्तूर निभाते, रह गयी जो तमन्नाएँ अधूरी 
दुआ करेंगे रब से, के वक्त रहते हो जाएं वो पूरी
रहें करीब या हों मीलों की दूरी  
साथ रहे बस, न हो दिलों में कोई दूरी 

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उनकी निगाहों के सायों से जो हम गुज़रे 
उनकी हसरतों के कई अधूरे हर्फ़ जो पढ़े
जिस अनकही इश्तेहा-ए-इश्क़ से वो आश्ना हुए 
लगा के जैसे अक्स-ए-ज़िन्दगी से रुबरु हुए

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ख्वाबिदा हुए उनके सीने पर सर रख 
हौले हौले धड़कते दिल की ग़ज़ल सुनते 
सासें जो पल भर के लिए उन्होंने थामी  
ऐसा लगा नफ़्स-ओ-जाँ रिहा हुई हमारी  

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महकती इस फ़िज़ा में खुश्बू आपकी ही आती है 
रोशनदान से छलकती धूप आपकी मुस्कान याद दिलाती है 
कैसे करें हम पलकें मूंदने की हिमाक़त 
के खुली हों या बंद आपकी ही तस्वीर झलकाती हैं    

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हर्फ़ = Page
इश्तेहा-ए-इश्क़ = Lust of Love
ख्वाबिदा = Dreamy Sleep
नफ़्स-ओ-जाँ = Spirit and Life

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