Saturday, September 21

एक खाली शीशी


हर इरादा हर ख़्वाइश
हर ख़्याल हर उम्मीद
एक खाली शीशी में क़ैद
फ़लक की ओर तकते रहते हैं

हर आंसू हर मुस्कराहट
हर आह हर लफ्ज़
एक खाली शीशी में क़ैद
साहिल की ओर तकते रहते हैं 

ख़याल फिर भी दुनिया घूम आते हैं
ख्वाइशें भी पर फड़फड़ा लेती हैं
लेकिन वक़्त की झिल्ली में क़ैद
हम यूँ ही उफ़क़ को तकते रहते हैं
हम यूँ ही उफ़क़ को तकते रहते हैं





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