Sunday, October 21

रहने दो


सरसराती इन सर्द हवाओ में, अब भी गर्माहट है इश्क के तुम्हारी 
कोहराई इस शब् में, अपने आगोश का पश्मीनाई एहसास तो साथ रहने दो... 

महकती हुए इस शबनमी समां में, फैली है खुशबू तुम्हारी,
शब्-ए-उल्फत की याद में, अपनी महकती हुई रूह तो साथ रहने दो... 

थरथराते मुस्कुराते ये नम लब, लेते हैं सिर्फ नाम तुम्हारा, 
तन्हाई और मेरे बीच, अपना बस एक ये साथ तो रहने दो... 
 
गम-ए-रुसवाई की इन शामों में, भी खूबसूरत है ये साथ तुम्हारा
शब्-ए-तन्हाई के इस आलम में, अक्स अपना साथ रहने दो...

थमती चलती इन साँसों में, एक नर्म नम एहसास है तुम्हारा, 
मय्यत-ए-मोहब्बत के ज़ेहन में, तुम्हें पाने की आरज़ूओं का साथ रहने दो...





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