Wednesday, October 3

क्यों?


कातिलाना मुस्कुराहट दे 
यूँ दिल तड़पाते हो क्यों ?
दामन में बिजलियाँ गिरा 
यूँ जान झुलसते हो क्यों ?
निगाहों से निगाहें मिला
यूँ नज़रें फेर जाते हो क्यों ?
पल पल की हर गुफ्तगू कर 
यूँ खामोश हो जाते हो क्यों ?
सदा-ए-इश्क है इशारों में 
यूँ रंजज़दा हुए जाते हो क्यों ?
गिले-शिकवे नहीं हैं कुछ 
यूँ रुसवा किये जाते हो क्यों ?
सैल-ए-नज़र का सैलाब है 
यूँ कता-ए-नज़र करते हो क्यों ?
ज़माने से आगोश्-खुशा हैं
यूँ दर-ए-क़फ्स से तकते हो क्यों ?



रंजज़दा = Filled with Misunderstanding

सैल-ए-नज़र = Tears
कता-ए-नज़र = Ignore
आगोश्-खुशा = Waiting to Embrace
दर-ए-क़फ्स = Prison Door 

No comments:

Post a Comment