Saturday, October 27

तन्हा



मैं और मेरी तन्हाई 
इस खामोश-सन्न रात में
हम-नशीं हैं 
पैमाना लिए हाथों में 
हलकी सर्द हवा का 
आगोश लेता है घेर हमें 
क़दमों के हैं फासले
उनकी ओर जाती राह में 
गुज़रे थे आज जब 
उनके आशियाँ के करीब से
यादों का सैलाब गुज़रा
झुकी पलकें तर हुई बूंदों से
गहरी सांस ले, दो पल रुक
निहार उस आशियाने को
यादों को समेट लाये
तरसते
उनकी एक झलक को 
क़दम लौटा लाये 
तन्हाई में 
दर्द-आमेज़ आहें भरने को  



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