Thursday, October 13

पैगाम


एक दोस्त की याद जब हमें आई तो यह पैगाम उनकी ओर रुखसत किया...


"जिंदगी राज़ है तो राज़ रहने दो,
अगर है कोई ऐतराज़ तो ऐतराज़ रहने दो,
अगर आपका दिल कहे हमें याद करने को,
तो दिल से ये न कहना, कि आज रहने दो..."


उनकी ओर से जवाब आया...


जिंदगी के राज़ का लुत्फ़ उठाना सीखो...
हर गम में मीठा एहसास देखो...
न यूँ ऐतराज़ में हमारे सर्द बयार ढूंढो...
कि दिल में हमारे जो जज़्बा है, तुम उसकी खूबसूरती देखो..."



सुबह के पहले पहर में हमारा जवाब कुछ यूँ था...


"जिंदगी से न कोई गन न शिकवा है हमें...
इन ग़मों से न गुजारते तो उन चंद खुशियों का एहसास न हुआ होता...
सर्द हवाओं का भी एक अलग लुत्फ़ है यारा...
दूर न हुए होते तो जज़्बातों की खूबसूरती का इल्म न हुआ होता..."


इंतज़ार शेष है...


... मुद्दतों के इन्तेज़ार के बाद उनके कलाम का आगाज़ कुछ इस तरह हुआ...


क्या कहें आपसे सितमगर...
इतने दूर रहकर भी दिल को छू जाते हो...
ये यूँ कहें कि...
अपनी आवाज़-और-नज़र से कायनात दिखा जाते हो...



... सोच में डूबें हैं ...