Sunday, August 28

न जाने कब


लफ़्ज़ों के मायने न जाने कब

ख़ामोशी की नज़र हो गए 
मुस्कुराते हमसफ़र न जाने कब
तमाशायी बन गुज़र गए 

आतिशीं नज़दीकियां न जाने कब 

फ़िराक़-ए-जान की नज़र हो गयी
इबादत-ए-इश्क़ न जाने कब 
लतीफ़ा-ए-नफ़्स बन गुज़र गयी 

ख़ुशबुओं का मंज़र न जाने कब

वीरानियों की नज़र हो गया   
बहारों का इंतज़ार न जाने कब
वहशत की सर्द धुंध से गुज़र गया

यादों की तस्वीरें न जाने कब

ख़ुश्क अश्कों की नज़र हो गयी  
इंतज़ार-ए-यार में न जाने कब
ज़िन्दगी तन्हां ही गुज़र गयी 






फ़िराक़-ए-जान = Distances in Life
लतीफ़ा-ए-नफ़्स = Joke of Life 
मंज़र = Scene / Landscape
वीरानियों = Desolation 
वहशत = Solitude 
ख़ुश्क अश्कों = Dry Tears