Friday, November 6

दूरियां


कुछ दूरियां कुछ फासले अब भी बाकी हैं
कुछ ख्वाईशें कुछ उम्मीदें अब भी बाकी हैं
गुज़र नहीं पाते हम उन गलियों उन राहों से 
जिन पर उनके निशान अब भी बाकी हैं 

कुछ दूरियां कुछ फासले अब भी बाकी हैं
पलों में सिमटती सुर्ख शाम अब भी बाकी हैं 
हर लम्हा गुज़रता है उनके इंतज़ार में
फिजाओं में उनकी आहट अब भी बाकी है 

कुछ दूरियां कुछ फासले अब भी बाकी हैं
यादों की खूबसूरत कायनात अब भी बाकी है
मुन्तजिर हैं हर पल उनके दीदार के  
आतिशीं शामों की लौ अब भी बाकी है 


कुछ दूरियां कुछ फासले अब भी बाकी हैं
रूह से रूह का राबता अब भी बाकी हैं 
दूरियों के फनाह होने का है इंतज़ार
ज़िन्दगी से कुछ तवक्कोआत अब भी बाकी हैं