Monday, November 25

कैसे??



रूठ कर हमसे सासें ले पाओगे कैसे?
खफा हो हमसे मुस्कुरा पाओगे कैसे?
साज़-ए-दिल के तार जुड़े हैं जन्मों से 
मोहब्बत की ये नज़्म अनसुनी कर पाओगे कैसे?

लफ़्ज़ों से ख़्वाबों को हासिल कर पाओगे कैसे? 
तड़प कर आरज़ूओं की ताबीर कर पाओगे कैसे?
अहल-ए-दिल है इस क़दर एक दूजे में
बज़्म-ए-उल्फत में खुद को तन्हा पाओगे कैसे?

तन्हाई का दामन थामे क़ज़ा तक चल पाओगे कैसे?
बेपनाह मोहब्बत कर हमसे गैरों के हो पाओगे कैसे?
हमकदम रहे हैं यूँ हम तुम बरसों से  
ज़र्रा ज़र्रा अरमानों को ले राह-ए-दहर पर चल पाओगे कैसे?  

चाँद तारों को पाने की ख्वाइश पूरी कर पाओगे कैसे?
फलक पर जहाँ बसाने की आरज़ू को अंजाम दे पाओगे कैसे? 
उस नैरंग-ए-सहर का इंतज़ार रहेगा हमें  
खुशीयों का सुर्ख दामन इस जन्म में ओढ़ा पाओगे कैसे? 





साज़-ए-दिल = Instrument of the Heart
नज़्म = Song
ताबीर = Completion, Realization
अहल-ए-दिल = Resident of Heart
बज़्म-ए-उल्फत = Gathering of Love
क़ज़ा = Death
ज़र्रा ज़र्रा = Small Particles
राह-ए-दहर = Path of Life 
फलक - Sky 
नैरंग-ए-सहर = Magical Morning
सुर्ख दामन = Red Dress 

Friday, November 15

अक्स-ए-ज़िन्दगी - २



अरमानों की डोर टूटा नहीं करती 
इरादों की पतंग झुका नहीं करती
मोहब्बत संग हो गर ए-दोस्त मेरे 
फलक की कोई सीमा नहीं होती 

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आब-ऐ-चश्म तो हम रोज़ पिया करते हैं 
पैमानों को भी रोज़ छलकाया करते हैं
ये कमबख्त तिश्नगी ही नहीं बुझती, ए-साकी 
तेरे लबों से आब-ऐ-उल्फत जो पिया नहीं करते हैं 

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उनके गालों की ये सुर्खियाँ देख
यारों ने हाल-ऐ-दिल पूछ ही लिया
इससे पहले कह पाते लफ़्ज़ों में कुछ 
भीनी मुस्कराहट ने हाल बयान कर दिया 

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इज़हार-ए-इश्क इशारों में कर चुके हैं वो
चंद लम्हों में जन्नत सजा चुके हैं वो 
इल्तज़ा है उनसे इस बेसर्ब दिल की 
आरज़ूओं को लफ़्ज़ों में अब तो बयान कर दें वो

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नज़रें जो उनसे मिली तो इबादत हो गयी
हमआगोश जो हुए तो क़यामत हो गयी
चल रहे थे सुनसान राहों पर अकेले
संग चल लिए वो तो राह चमनज़ार हो गयी 

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फलक = Sky 
आब-ऐ-चश्म = Tears
तिश्नगी = Longing Thirst
आब-ऐ-उल्फत = Water of Love
हमआगोश = Embraced
चमनज़ार = Garden of Flowers


अक्स-ए-ज़िन्दगी - १



ज़माने के दस्तूर निभाते, रह गयी जो तमन्नाएँ अधूरी 
दुआ करेंगे रब से, के वक्त रहते हो जाएं वो पूरी
रहें करीब या हों मीलों की दूरी  
साथ रहे बस, न हो दिलों में कोई दूरी 

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उनकी निगाहों के सायों से जो हम गुज़रे 
उनकी हसरतों के कई अधूरे हर्फ़ जो पढ़े
जिस अनकही इश्तेहा-ए-इश्क़ से वो आश्ना हुए 
लगा के जैसे अक्स-ए-ज़िन्दगी से रुबरु हुए

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ख्वाबिदा हुए उनके सीने पर सर रख 
हौले हौले धड़कते दिल की ग़ज़ल सुनते 
सासें जो पल भर के लिए उन्होंने थामी  
ऐसा लगा नफ़्स-ओ-जाँ रिहा हुई हमारी  

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महकती इस फ़िज़ा में खुश्बू आपकी ही आती है 
रोशनदान से छलकती धूप आपकी मुस्कान याद दिलाती है 
कैसे करें हम पलकें मूंदने की हिमाक़त 
के खुली हों या बंद आपकी ही तस्वीर झलकाती हैं    

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हर्फ़ = Page
इश्तेहा-ए-इश्क़ = Lust of Love
ख्वाबिदा = Dreamy Sleep
नफ़्स-ओ-जाँ = Spirit and Life