Sunday, August 28

न जाने कब


लफ़्ज़ों के मायने न जाने कब

ख़ामोशी की नज़र हो गए 
मुस्कुराते हमसफ़र न जाने कब
तमाशायी बन गुज़र गए 

आतिशीं नज़दीकियां न जाने कब 

फ़िराक़-ए-जान की नज़र हो गयी
इबादत-ए-इश्क़ न जाने कब 
लतीफ़ा-ए-नफ़्स बन गुज़र गयी 

ख़ुशबुओं का मंज़र न जाने कब

वीरानियों की नज़र हो गया   
बहारों का इंतज़ार न जाने कब
वहशत की सर्द धुंध से गुज़र गया

यादों की तस्वीरें न जाने कब

ख़ुश्क अश्कों की नज़र हो गयी  
इंतज़ार-ए-यार में न जाने कब
ज़िन्दगी तन्हां ही गुज़र गयी 






फ़िराक़-ए-जान = Distances in Life
लतीफ़ा-ए-नफ़्स = Joke of Life 
मंज़र = Scene / Landscape
वीरानियों = Desolation 
वहशत = Solitude 
ख़ुश्क अश्कों = Dry Tears 






Monday, July 25

प्रकृति के रंग


गुज़रती सर्द हवाओं की सरसराहट
गरजते बादलों की गड़गड़ाहट 
बारिश से होती मौसम की हलचल  
नदियों में गुज़रते पानी की कल कल 
पेड़ों पर बैठी चिड़ियों की चहचहाहट 
प्रकृति के रंगों में डूबी हर आहट 


ख़ूबसूरत फूलों से सजे बागान 
फसल से हरे भरे खेत खलिहान 
समंदर की लहरों का सुरीला शोर 
चांदनी रातों में तारों की शीतल डोर 
पत्तों पर पड़ी ओंस की बूंदों की आन  
प्रकृति के रंगों में डूबी मनुष्य ही शान 



पर्वतों की ऊंची बर्फ़ीली चोटियाँ 
झाड़ियों से आती झींगुरों की सीटियां 
बोल उठता है प्रकृति का हर रूप 
प्रकृति में ढलता मानव का स्वरुप 
लहकती डगर से गुज़री पेड़ों की डालियाँ 
प्रकृति के रंगों से सराबोर खूबसूरत गलियां 



Wednesday, May 4

फ़िज़ा...


सर्द हवाओं में एक तपिश सी है
गरजती मेह में एक गर्दिश सी है
आशना-ए-अक्स निगाहों में लिए
उन बिन हस्ती बेआब आईने सी है

सोज़ रातों को तन्हां करती
फ़िज़ा में आज एक नमी सी है

नफ़्स-ऐ-उल्फत कुछ थमी सी हैं
हसरत भरी निगाहें कुछ झुकी सी हैं
चल रहे हैं सोज़ ज़हन में सवाल लिए
उन बिन जवाबों में एक कमी सी है

सोज़ रातों को और तन्हां करती
फ़िज़ा में आज कुछ नमी सी है

नसीम-ए-बैहर में एक कशिश सी है
ज़िक्र-ऐ-उल्फत में एक खलिश सी है
रफ्ता रफ्ता बढ़ते क़दमों तले
उन बिन ज़िन्दगी में एक कसक सी है

सोज़ रातों को कुछ और तन्हां करती
फ़िज़ा में आज फिर कुछ और नमी सी है