Saturday, January 21

...उनसे प्यार हुआ जाता है...

रात के सन्नाटे में, अकेले, कुछ ख्याल आये...




रह रह कर जब उनका ख्याल आता है ...
हौले हौले मन मुस्काता है ...
खुश हों लेते हैं हम उनका अक्स देख...
और धीरे धीरे उनसे प्यार हुआ जाता है ...


ज़र्रा ज़र्रा इस रौशनी में ...
महकी महकी एक कशिश सी है...
खो जाते हैं हम उनकी आवाज़ सुन...
और धीरे धीरे उनसे प्यार हुआ जाता है...


सीली सीली से एक ख्वाइश जगी है ...
उन्हे बाहों में लेने की एक खलिश सी है...
दूर से देख सुन खुश हों लेते हैं पर...
क्या करें के धीरे धीरे उनसे प्यार हुआ जाता है...

Friday, January 20

मन की उड़ान ...

आज कुछ अलग सा लिखने का मन हुआ और हम शब्दों में बह से गए...

इस मन की चंचलता देखो
देखो तो इसकी उड़ान
सपनों में जो विचरण करता है
अपनी ही धुन में यह तो जीता है
सोच सोच कुछ बीती बातें 
यह ताना बाना बुनता है
जो न था न है न होगा 
हर घड़ी स्मरण उसका करता है 
मोह माया में बंधा ये 
निस दिन यह जप करता है  
आओगे तुम कब तुम मेरे दर
टकटकी बांधे हर डगर तकता है 
पेड़ों की डालों से गुज़री 
शीतल हवा से पूछा करता है 
हैं कहीं वोह आस पास
या दूर से संदेसा लाती हो 
ऐसा ही है तो उन्हे भी 
क्या हमारी याद दिलाती हो???

Thursday, January 19

ख्वाइश ...


झुकी झुकी सी इन पलकों में, आब-ए-चस्म के पैमाने है...
रुके रुके से इन लबों पे, पैगामे-ए-इकरार के अल्फाज़ है...
खुली खुली सी इन बाहों में. उनके आगोश की खलिश है...
थमी थमी सी इन धडकनों में, उनके क़दमों की आहट है...
झुके रुके खुले थामे, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपको चाहने की है, कुछ आपको पाने की है...

चुप चुप रहते हैं, मगर पलकें छलक जाती है...
हौले हौले मुस्कुराते हैं, पर हया झलक जाती है...
भीनी भीनी खुशबुएँ भी आपका पैगाम लाती है...
सीली सीली सी हवाएं, यादों में सराबोर किये जाती है...
चुप हौले भीनी सीली, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपकी चाहत की है, कुछ आपको पाने की चाहत है...

झुके रुके खुले थामे, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपको चाहने की है, कुछ आपको पाने की है...
चुप हौले भीनी सीली, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपकी चाहत कि है. कुछ आपको पाने की चाहत है...
इकरार-ए-इश्क हो न हो, ख्वाइश-ए-बेबाक-मोहब्बत कायम है...
इज़हार-ए-इश्क हो न हो, नूर-ए-जन्नत की चाह कायम है...

वो और हम...

नज़रें उठाते हैं तो, अपना अक्स उनकी आँखों में पाते हैं...
नज़रें झुकाते हैं तो, पलकों पर पड़ी शबनम में उनका अक्स देख जाते हैं...
दूरियां तो हैं मगर, उनकी आहट को अपने ज़ेहन में पाते हैं...
निगाहों निगाहों  में, न जाने वोह क्या कुछ कह जाते हैं...
बेबाक हों वोह हमारे दामन पर, सर रख सो जाते हैं...
वोह जाग न जाएँ इस डर से, हम धडकनों को रोक लेते हैं...
लबों को उनके चूमना च्चते हैं, मगर उनकी मुस्कुराहट में खो जाते हैं...
बेखयाली का आलम है कुछ ऐसा उनके आगोश में ...
के हम सब कुछ भुलाये उनकी जुल्फों में खो जाते हैं...

किसका है इंतज़ार...

देखती हूँ आसमां के इन बुझे हुए सितारों को, 
के मुझे जुगनुओं के आने इंतज़ार है...
खुशियाँ हैं मुझसे कुछ खफा खफा, 
के मुझे सहर-ए-जिंदगी के आने इंतज़ार है...
हुजूम सा है लोगों का मेरे चारो ओर, 
के मुझे एक हम-नफ्स, एक राज़दां के आने इंतज़ार है...
तकती हूँ जिंदगी की इस बेचैन राह को, 
के मुझे उनकी आहटों के होने का इंतज़ार है...
सोचती हूँ कि मेरी जिंदगी तो बस एक राह है, 
के मुझे मंजिलों के करीब आने का इंतज़ार है...
न जाने क्या है जो न पाया, या जो खो गया है, 
या के शायद मुझे अपने ही आने का इंतज़ार है....


...मुझे अपने ही आने का इंतज़ार है...

Wednesday, January 18

अश्कों की बूँदें...

सर्द फिजाओं की ओंस से लिखा यह पैगाम-ए-कलाम...




"ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
उनके आने की राह पर टिकी है हमारी निगाहें...
दस्तक-ए-मोहब्बत के इन्तेज़ार में ...
बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें...


ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
लब थरथराए, कुछ और नम हुई हमारी निगाहें...  
इज़हार-ए-मोहब्बत के इन्तेज़ार में ...
बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें...


ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
डरते हैं, रूबरू होते ही छलक न जाएँ यह निगाहें ...
हिजाब-ए-हया ओढ़े इश्क है इन झुकी हुई पलकों में ...
के बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें...


... ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें ..."

आरज़ू

हम यूँ ही गलियारे में खड़े कुछ सोचते हुए नजारों का आनंद ले रहे थे, कि इस कलाम ने हमारे मन में दस्तक दी...


घर के गलियारे से जब आसमान कि और देखते हैं...
सेंकडों तारों के बीच एक चाँद दिखाई देता है...
उसी गलियारे से जब नीचे की ओर देखते हैं ...
अनगिनत रास्तों मिएँ एक घार का रास्ता दिखाई देता है...
राहों से हमारी गुज़रे हैं बहुत से रहगीर ...
पर न जाने क्यों सिर्फ आपको पाने कि आरज़ू किये जाते हैं ...


कहते नहीं हैं हम कुछ मगर, बस दोस्ती निभाए जाते हैं...
इज़हार-ए-इश्क नहीं करते, बस शेर अर्ज किये जाते हैं...
रूबरू होने कि तमन्ना लिए, बस कुछ ख्वाब संजोये जाते हैं...
आगोश में आपके कुछ लम्हे पाने की तमन्ना किये जाते हैं...
नज़रों से हमारी गुज़रे हैं बहुत से रहगीर ... 
पर न जाने क्यों उन सब में बस आपका ही चेहरा दिखाई देता है...


बस आपका चेहरा देख, आवाज़ सुन, आपकी आरज़ू किये जाते हैं...

उनकी रुखसती...

एक दोस्त ने शायरों की महफ़िल से रुखसती की इज़ाज़त कुछ इस ढंग से मांगी की हमें उन्हें इज़ाज़त देने का मौका ही नहीं मिला और वोह महफ़िल से अलविदा कह चले गए ...

वोह अपना कलाम कुछ यूँ कह कर चले गए... 


"रुखसत चाहते हैं अलविदा कहा चाहते हैं 
शायरों की इस महफ़िल से हम 
अपनी गुमशुदगी दर्ज किया चाहते हैं 
मयस्सर ना हुए हैं हम अभी, न हुआ चाहते हैं 




गुज़ारिश अर्ज-ए-महफ़िल है यह हमारी
खुदा के साथ बस एक लम्हा चाहते हैं 
एक इल्तेजा है हमारी, कबूल ज़रूर करना
कुछ वक्त हम अपने साथ बिताया चाहते हैं"



हमारा इजाज़त देने का अंदाज़ कुछ ऐसा था...


"दोझाक से जन्नत की राह दिखा कर...
यादों से विसाल-ए-यार के ख़याल की ओर इशारा कर...
पिंजर से खुले आसमान का रुख दिखा कर...
आप हमसे रुखसती की इजाज़त क्यों कर पाना चाहते हो?


हमें अपने ही पिंजर की कैद से आज़ाद कर...
हमसे खुद अपनी आज़ादी गुजारिश कर...
खुद से रूबरू हो खोज वापस लाने का वादा कर...
आप हमसे ही रुखसती की इजाज़त क्यों कर पाना चाहते हो?


भाया तो नहीं आपका यूँ जाना अलविदा कह कर...
दिल दुखी है आपकी यह इल्तेजा कबूल कर...
दुआ करते हैं लौट आओ खुद को जल्द पा कर...
रहेगा हमें इन्तेज़ार महफ़िल-ए-शायरी में, जब भी आना चाहते हो..."


... हमें इन्तेज़ार रहेगा...

Wednesday, January 11

कश्मकश

खामोश लबों की मुस्कराहट में ...
बिन लफ़्ज़ों की कुछ पोशीदा सी बातें हैं...
इन खामोश पोशीदा सी बातों में ...
कुछ बेनकाब प्यार की सौगातें, 
कुछ चाहत की बरसातें हैं ...
कुछ बातों को हम मुद्दतों से,
अपने सीने में छुपाये बैठे हैं...
कुछ पाए बिना ही, सब गवाएँ बैठे हैं...
यह इल्म है हमें कि नहीं हों सकते तुम्हारे...
फिर भी न जाने क्यों दिल-ओ-जान लुटाए बैठे हैं...
क्या करें धड़कनों के सैलाब का...
जो हर पोशीदा ख्याल को मिटाए देता है...
हो तुम किसी और के, 
फिर भी खुद को समझा नहीं पाए हैं...
सही गलत का तर्क करते बीत रही है मुद्दते ...
फिर भी तुमसे दूर होने का तर्क,
इस कमबख्त दिल को समझा नहीं पाए हैं...
जानते हैं एक मील का पत्थर हैं हम,
जिंदगी की राह में तुम्हारी,
न चाह कर भी खुशियों की राहों में,
एक दीवार ही बन पाए हैं...
सहर की इन फिजाओं में, 
शब् की इन वीरानियों में ...
कश्मकश में फंसा है यह दिल...
ये मोहब्बत नहीं है मेरी गर तुम्हारे लिए ...
तो बताओ हमें,
मायने क्या है ए ज़ालिम इश्क के, तुम्हारे लिए??


Tuesday, January 10

कसक-ए- मोहब्बत

मोहब्बत को नाराजगी का हिजाब पहना दिया...
कसक-ए-मोहब्बत को एक कफ़न ओढा दिया...
रुखसती हमारी न नाराज़गी का सबब है ना वीरानियों का निशाँ...
यह तो सिर्फ एक पैगाम-ए-इबादत है...
खुदगर्ज़ नहीं है हम ए जिंदगी, कि जिंदगी को जिंदगी से दूर करें...
समझ सको तो समझ लो इन इशारों को तुम...
हमसफ़र नहीं हो सकते अगर तो क्या ...
हिजाब-ए-हया ओढ़े हमकदम बन तो हैं साथ...


निकल पड़े हैं अब अकेले जिंदगी की राहों पर...
न-ज़ाहिर कसक-ए-मोहब्बत दिल में छुपाये...
जब भी सोचा कि न सोचेंगे तेरे बारे में ए काफिर...
हर बार इस कमबख्त दिल ने कोई न कोई बहाना कर लिया...
जानते हैं तो सिर्फ इतना, के मुड कर जब भी यादों से रूबरू होंगे...
यही सोचेंगे कि जिंदगी गुजार गयी, रिश्ते कायम करते...
मुड मुड जो देखा सूनी राहों को, तो मोहब्बत का कहीं निशाँ ही न था...


मोहब्बत का कहीं निशाँ ही न था...

Thursday, January 5

Remember When...

Was just driving across Kharghar and heard someone celebrating their Birthday with the song Happy Birthday to you... Remembered my Birthday which was made really special by this poem, which came across continents at an odd hour to bring a special smile to my lips...

When the clock ticked midnight
the day change added to my plight
for I was sitting in a meeting
thinking I would wish if I might
then the idea struck my mind
devil's device was very kind
got me the bluetooth connectivity
to show up here with this activity
Now I got the opportune time
to stand and play the chime
join me here to stand together
and wish the one and only
else she would become a lil nosey
Happy B'day to you Mishi...

Special Thanks to that Special Friend for making my day really Special... :)

Tuesday, January 3

मुलाकात उनसे कुछ ऐसी हुई...



मुलाकात उनसे कुछ ऐसी हुई...
बातों ही बातों,निगाहों ही निगाहों में बात कुछ ऐसी हुई...
खोये कुछ इस कदर कि इल्म ही ना रहा...
कि लम्हों के कब दिन और कब रातें हुईं...


इज़हार-ए-मोहब्बत जो हमने किया ...
जज्बातों की अफरा तफरी कुछ ऐसी हुई ...
खामोशियों में कुछ कहा, कुछ कह न पाए हम...
हौले हौले नजदीकियां कुछ ऐसी हुई...


जूनून-ए-मोहब्बत का आलम कुछ इस कदर छाया ...
उनकी निगाहों में मासूमियत कुछ ऐसी पाई ...
ना इरादे जान पाए, ना जज़्बातों का ही इल्म हुआ ...
ना समझ ही पाए कब कैसे क्यों नजदीकियां दूरियां हुई...


दर्द-ऐ-दिल का इल्म तब हुआ जब किनारे हुए...
कश्ती थी डूबी और हम थे मझधार में तन्हा खड़े हुए...
अब ना साथ है उनका, ना अरमानों की वोह शाम...
ना उनकी निगाहों की गहराई, ना जुल्फों का पैगाम...


लेकिन ज़हन में अब भी धडकती है उनकी आवाज़...
महकती है अब भी खुशबू उनकी ज़हन में बसी हुई ...
उनके आगोश का एहसास यूँ है यादों में बसा...
जैसे की कल ही हो उनसे मुलाकात हुई...


जैसे की कल ही हो उनसे मुलाकात हुई...