Monday, February 27

बेजुबान दिल...


बेजुबान दिल एक दास्ताँ कहा चाहता है...
ज़माने के बंधनों को तोड़ खुमार-ए-इश्क फैलाया चाहता है...
समझाए यह कैसे उन्हे अपनी नादानी का सबब...
बस दिल-ए-नादाँ तो नफ्स-ए-इबादत का नगमा-ए-मोहब्बत सुनाया चाहता है...

बेजुबान दिल मोहब्बत के कलाम पढ़ा चाहता है...
ज़माने के बंधनों को तोड़ हुस्न-ए-इश्क को जईफ जताया चाहता है ...
समझाए यह कैसे उन्हे आब-ए-हुस्न तो एक पैमाना है ...
बस दिल-ए-नादाँ तो जज्बा-ए-एहसास का एक जाम छलकाया चाहता है...

बेजुबान दिल एहसास-ए-इश्क में डूबा चाहता है ...
ज़माने के बंधनों को तोड़ उनके आगोश में सोया चाहता है ...
समझाए यह कैसे उन्हे गिले-शिकवे नहीं है उनसे कोई ...
बस दिल-ए-नादाँ तो फिजा-ए-जूनून में सुरूर-ए-इश्क का एहसास पाया चाहता है...

बेजुबान दिल उन्हे अपनी निगाहों से निहारा चाहता है ...
ज़माने के बंधनों को तोड़ लबों की मासूमियत को चूमा चाहता है ...
समझाए यह कैसे आब-ए-चस्म की गहरायों का सबब  ...
बस दिल-ए-नादाँ तो पयाम-ए-रूह इस कलाम-ए-इश्क से उन तक पहुँचाया चाहता है...

Friday, February 17

“वोह आयेगी...”


एक अलग अंदाज़ में आपबीती लिख रही हूँ... मेरा ख्याल है बहुत लोग इस परिस्थिति से वाकिफ भी होंगे और रोज मर्रा की जिंदगी में उन पर गुज़रती भी होगी .... पेश है एक आपबीती !!




वोह आयेगी...
वोह ज़रूर आयेगी...
सुबह आयेगी...
सुबह नहीं आ पाई ...
तो दोपहर में आयेगी...
दोपहर में भी नहीं आई...
कोई काम आ गया होगा...
शाम तो पक्का आयेगी...
आज नहीं आ पाई.. 
कोई नहीं...
कल तो आ ही जाएगी ...
कल सुबह बीती, वोह न आई...
शाम तक इन्तेज़ार किया...
पर वोह फिर भी न आई...
उम्मीद तो अब भी है...
सड़क पर नज़रें टिकी हैं...
दिमाग कहता है न रुक तू 
उसके इन्तेज़ार में ...
छोड़ यह आराम, 
न बैठ हाथों को हाथों में थाम... 
शुरू कर कुछ अपना... 
और बहुत सा उसका काम...
दिल को अब भी उम्मीद है और कहता है...
थोड़ा और इन्तेज़ार कर ले... 
में कहता हूँ आयेगी आयेगी वोह ज़रूर आयेगी...


इन्तेज़ार की घड़ियाँ दिनों में बदली...
न वोह आई न ही उसकी कोई खबर...
हर तरफ हैं धूल की महीन चादर...
और हैं हम कलम की जगह झाड़ू लिए हुए...
सामने है बाल्टी कपड़ों की ...
कुछ पड़ा है धोने के लिए... 
कुछ सुखाने के लिए...
अब तो हम हैं और अन्धुले बर्तनों का ढेर...
हाथ में साबुन और झामा लिए हुए...
दिमाग कोसता है और हम सोचते हैं,
पढाई लिखाई कर भी यही अंजाम होना था...
लैपटॉप की जगह, गैस टॉप होना था... 
पर मोया दिल कमबख्त ...
अब भी विश्वास के साथ कहता है... 
यूँ परेशान ना हो जानेमन ...
सब्र रख...
आयेगी आयेगी ...
तेरी कामवाली बाई ज़रूर आयेगी... 
जल्द ही ... ज़रूर आयेगी... !!
  

Wednesday, February 15

खुदगर्जी


कुछ रोज पहले जब अपनी जिंदगी और रिश्तों के मायने समझने की कोशिश कर रही थी, तब खुद जिस कश्मकश से गुजरी वोह इस कलाम में उभर आई... शुरू में सिर्फ दो पंक्तियाँ थी, पर जैसे ही रात ढली और सुबह हुई तो एक कविता बन गयी... लिखूं, या न लिखूं की कश्मकश तब भी थी और आज भी कायम है, फिर भी अर्ज कर रही हूँ...


कहते हैं वोह...
के हम खुदगर्जी की इन्तेहाँ करते हैं...
अब क्या कहें उनसे...
... जो इज़हार-ए-इश्क किसी और के लिए,
 हम से बयान करते हैं...

कहते हैं वोह...
के हम खुदगर्जी की इन्तेहाँ करते हैं...
अब क्या कहें उनसे...
... जो पहलू में किसी और के होने का मंज़र लिए,
 हमें आगोश में लिया करते हैं...

कहते हैं वोह...
के हम खुदगर्जी की इन्तेहाँ करते हैं...
अब क्या कहें उनसे...
... जो पलकों पर ख्वाबों को उनके सजाये,
 दामन में हमारे सर रख सो लिया करते हैं...

कहते हैं वोह...
के हम खुदगर्जी की इन्तेहाँ करते हैं...
अब क्या कहें उनसे...
... जो लबों पर उनका नाम लिए,
 हमसे मोहब्बत का इज़हार किया करते हैं...

कहते हैं वोह...
के हम खुदगर्जी की इन्तेहाँ करते हैं...
अब क्या कहें उनसे...
... जो हमारे वजूद पर
हर कदम बेवजह कहर ढाया करते हैं...


... और फिर भी कहते हैं वोह, के हम खुदगर्जी की इन्तेहाँ करते हैं !!


"झंझावात"

सन्नाटे भरी स्याह रात
उमड़े हैं मन में कुछ सवाल

सूना है क्यों
ये सितारों भरा अम्बर
क्यों भीगा है
मेरा यह दामन
क्यों है अनगिनत तारों
में यह चाँद अकेला
क्यों थमी है सर्द बयार में
साँसों की ये डोर
क्यों है आँखें नम
और तापी हुई है आह
क्यों हैं सर्द तुम्हे थामे
हमारे यह सुर्ख हाथ

कुछ गुफ्तगू नहीं
तो लम्हे गिनते हैं क्यों
जानते हैं अकेले हैं जीना
फिर सहारा ढूंढते हैं क्यों
इल्म है आहट दे, आओगे नहीं
फिर भी यूँ राह तकते हैं क्यों

नहीं जानते हम
इन सवालों के जवाब
सिर्फ इतना है पता
न रहा है धैर्य अब
हर कतरा बटोरने का
गिनती है
हमारी अनेकों में
पर न रही चाह
अब अव्वल होने की
थक चुके हैं
हर लम्हा, हर कदम
इन्तेज़ार में
अलविदा कह
मुक्त किया चाहते हैं
तुम को, खुद को
टूटते हुए रिश्तों के
इस झंझावात से ...

Sunday, February 12

सिहरन


उनके आने की आहट ज्यों हुई...
दिल धड़का और पलके झुकी...
रोम रोम रूमानी कर जाती ...
तन में जगी वोह हसीन सिहरन ...

उनके हाथों की वो छुअन...
हाथों से हाथों का तराशना...
एक तृष्णा सी जगा जाती ...
उँगलियों की वो थिरकती सिहरन...

एक लय में लहर उठती है...
जब सुर ताल से मिल जाते है ..
होंठों को नम कर जाती ...
गर्म साँसों की वो दहकती सिहरन ...

एक होते उन पलों की सोचें ...
तो न दिल कुछ कहे न मन ...
बस एक हसीन मंज़र दिखा जाती ...
चाहत की वो रूमानी सिहरन...

मन हिडोले लेता है...
अंग अंग उठती है एक तरंग...
नम आँखें भी ज्वलित हो जाती...
साँसों में बजती मृदंग सी वो सिहरन...

इश्क है या सिर्फ एक आभास ...
एक पल, एक युग का ...
इन्द्रधनुषी एहसास करा जाती ...
जलती बुझती नम होती सिहरन ...

... हर एक लम्हे में सिमटी कई लहरों सी वो रूमानी सिहरन ...

Friday, February 10

कहनी है...


कुछ अपनी कुछ उनकी है कहनी
कहनी है, बस छोटी सी एक कहानी

बंधे हैं तार उन संग हमारे
पिरो के कुछ मोती बनेगी
कुछ मेरी कुछ उनकी कहानी
कहनी है, बस छोटी सी एक कहानी

सपनों की ओंस और पलकें हमारी
ढलक जाती है ज्यों तुम आते हो
जमा हो कहने कुछ और ही कहानी  
कहनी है, बस छोटी सी एक कहानी

जीवन दरिया के बहते पानी में
कतरा कतरा संजोते हैं यादें
बीते हुए पलों की एक खोयी कहानी
कहनी है, बस छोटी सी एक कहानी

काश के तुम मेरे हो पाते
पलकों पर बैठाते, दिल में बसाते
रचते न यूँ अकेले उम्मीदों की ये कहानी
कहनी है, बस छोटी सी एक कहानी

कुछ अपनी कुछ उनकी है कहनी
कहनी है, बस छोटी सी एक कहानी