Wednesday, May 4

फ़िज़ा...


सर्द हवाओं में एक तपिश सी है
गरजती मेह में एक गर्दिश सी है
आशना-ए-अक्स निगाहों में लिए
उन बिन हस्ती बेआब आईने सी है

सोज़ रातों को तन्हां करती
फ़िज़ा में आज एक नमी सी है

नफ़्स-ऐ-उल्फत कुछ थमी सी हैं
हसरत भरी निगाहें कुछ झुकी सी हैं
चल रहे हैं सोज़ ज़हन में सवाल लिए
उन बिन जवाबों में एक कमी सी है

सोज़ रातों को और तन्हां करती
फ़िज़ा में आज कुछ नमी सी है

नसीम-ए-बैहर में एक कशिश सी है
ज़िक्र-ऐ-उल्फत में एक खलिश सी है
रफ्ता रफ्ता बढ़ते क़दमों तले
उन बिन ज़िन्दगी में एक कसक सी है

सोज़ रातों को कुछ और तन्हां करती
फ़िज़ा में आज फिर कुछ और नमी सी है