Sunday, May 17

...कुछ लम्हों की मुलाकात ...



मुलाकात कुछ ऐसी हुई...
बात ही कुछ ऐसी हुई...
कुछ ही लम्हों में...
करीबियाँ कुछ ऐसी हुई...
खो गए हम तुम...
मुलाकात कुछ ऐसी हुई...

तुम्हारे जज्बातों का...
हमें कोई इल्म नही...
न ख़ुद कुछ कहते हो...
न हमें ही मौका देते हो...
जानते हैं तो सिर्फ़ इतना...
गहराइयाँ शायद कुछ और हुई ....
नजदीकियां शायद कुछ और हुई...

तुम अब साथ नही हो...
पर अरमानों की वोह शाम...
धडकनों की वोह आवाज़...
तुम्हारी महक...
तुम्हारे छूने का एहसास...
...अब भी मेरे साथ है...
अब भी मेरे पास है...

...वोह कुछ लम्हों की मुलाक़ात ही कुछ ऐसी हुई...

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