Friday, February 17

“वोह आयेगी...”


एक अलग अंदाज़ में आपबीती लिख रही हूँ... मेरा ख्याल है बहुत लोग इस परिस्थिति से वाकिफ भी होंगे और रोज मर्रा की जिंदगी में उन पर गुज़रती भी होगी .... पेश है एक आपबीती !!




वोह आयेगी...
वोह ज़रूर आयेगी...
सुबह आयेगी...
सुबह नहीं आ पाई ...
तो दोपहर में आयेगी...
दोपहर में भी नहीं आई...
कोई काम आ गया होगा...
शाम तो पक्का आयेगी...
आज नहीं आ पाई.. 
कोई नहीं...
कल तो आ ही जाएगी ...
कल सुबह बीती, वोह न आई...
शाम तक इन्तेज़ार किया...
पर वोह फिर भी न आई...
उम्मीद तो अब भी है...
सड़क पर नज़रें टिकी हैं...
दिमाग कहता है न रुक तू 
उसके इन्तेज़ार में ...
छोड़ यह आराम, 
न बैठ हाथों को हाथों में थाम... 
शुरू कर कुछ अपना... 
और बहुत सा उसका काम...
दिल को अब भी उम्मीद है और कहता है...
थोड़ा और इन्तेज़ार कर ले... 
में कहता हूँ आयेगी आयेगी वोह ज़रूर आयेगी...


इन्तेज़ार की घड़ियाँ दिनों में बदली...
न वोह आई न ही उसकी कोई खबर...
हर तरफ हैं धूल की महीन चादर...
और हैं हम कलम की जगह झाड़ू लिए हुए...
सामने है बाल्टी कपड़ों की ...
कुछ पड़ा है धोने के लिए... 
कुछ सुखाने के लिए...
अब तो हम हैं और अन्धुले बर्तनों का ढेर...
हाथ में साबुन और झामा लिए हुए...
दिमाग कोसता है और हम सोचते हैं,
पढाई लिखाई कर भी यही अंजाम होना था...
लैपटॉप की जगह, गैस टॉप होना था... 
पर मोया दिल कमबख्त ...
अब भी विश्वास के साथ कहता है... 
यूँ परेशान ना हो जानेमन ...
सब्र रख...
आयेगी आयेगी ...
तेरी कामवाली बाई ज़रूर आयेगी... 
जल्द ही ... ज़रूर आयेगी... !!
  

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