Sunday, August 11

इल्म



हर मुलाकात बेसब्र सी गुज़रती है 
लबों पर हर बात आ आ कर थमती है 
रोज़ सोचते हैं करेंगे गुज़ारिश उनसे
क्या, कैसे कहें कुछ उनसे ...
के उन्हें देख निगाह भी ख़ामोशी ओढ़ लेती है  

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यादों के नशे में गर हम चूर हुए होते
उनकी इबादत से ही गर दूर हुए होते 
न देख पाते उनकी निगाहों में अक्स अपना
गर उनके ख़्वाबों के दायरे से दूर हुए होते 

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ख़्वाबों की ताबीर गर हमने की होती उस रोज़ 
यादों, ख्वाइशों में न यूँ गुज़री होती तन्हाँ रातें
कर देते गर हाल-ए-दिल बयान उनसे उस रोज़ 
हसरतों का दामन थामें न यूँ गुज़री होती तन्हाँ रातें

पलट कर हमने जो देखा आज उन सूनी राहों को 
उनसे जुदा होते हुए भी न यूँ गुज़री थी तन्हाँ रातें 
पलकों की चिलमन में सदा था अक्स उनका
उनके ख्यालों में ही यूँ गुज़री थी वो ख्वाबिदा रातें  

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पलकों पर लिए उनके अक्स के निशाँ 
रूबरू हुए हम उनसे उन्हीं के दर पर  
बेताब निगाहें जो मिली दायरों में सिमट 
बयान-ए- इश्क हुआ उन्हीं के दर पर 

हसरतों का ज़िक्र हुआ निगाहों-निगाहों में   
आगोशकुषा हुए उनसे उन्हीं के दर पर 
यकायक इल्म हुआ दूरियां न थीं कभी दरमियान 
के साया बन संग थे वो हमेशा हर तह दर पर 


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ख्वाबिदा = Full of Dreams
आगोशकुषा = Embrace
यकायक = Suddenly
तह दर = Closed Door




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