अरमानों की डोर टूटा नहीं करती
इरादों की पतंग झुका नहीं करती
मोहब्बत संग हो गर ए-दोस्त मेरे
फलक की कोई सीमा नहीं होती
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पैमानों को भी रोज़ छलकाया करते हैं
ये कमबख्त तिश्नगी ही नहीं बुझती, ए-साकी
तेरे लबों से आब-ऐ-उल्फत जो पिया नहीं करते हैं
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उनके गालों की ये सुर्खियाँ देख
यारों ने हाल-ऐ-दिल पूछ ही लिया
इससे पहले कह पाते लफ़्ज़ों में कुछ
भीनी मुस्कराहट ने हाल बयान कर दिया
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इज़हार-ए-इश्क इशारों में कर चुके हैं वो
चंद लम्हों में जन्नत सजा चुके हैं वो
इल्तज़ा है उनसे इस बेसर्ब दिल की
आरज़ूओं को लफ़्ज़ों में अब तो बयान कर दें वो
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नज़रें जो उनसे मिली तो इबादत हो गयी
हमआगोश जो हुए तो क़यामत हो गयी
चल रहे थे सुनसान राहों पर अकेले
संग चल लिए वो तो राह चमनज़ार हो गयी
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फलक = Sky
आब-ऐ-चश्म = Tears
तिश्नगी = Longing Thirst
आब-ऐ-उल्फत = Water of Love
हमआगोश = Embraced
चमनज़ार = Garden of Flowers
ओसम....टू गुड..!!!
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