गुज़रे वो दर से हमारे कुछ इस तरह...
के सुर्रूर भी न छाया और नशा भी हो गया...
लबों को छू उनके लब गुज़र गए कुछ इस तरह...
के रुक्सार सुर्ख भी हुए और दिल सोज़ भी न हुआ...
पलकों की चिलमन से हुआ दीदार कुछ इस तरह...
के निगाहें भी न मिली और दिल रोशन भी हो गया...
गुल-ए-फ़िरदौस में टहलते रहे कुछ इस तरह ...
के सौ रंग भी छलके और दामन सुर्ख़ भी न हुआ...
गुज़रे वो दर से हमारे कुछ इस तरह...
के संग भी रहा और जुदा भी हो गया...
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