लफ़्ज़ों के मायने न जाने कब
ख़ामोशी की नज़र हो गए
मुस्कुराते हमसफ़र न जाने कब
तमाशायी बन गुज़र गए
आतिशीं नज़दीकियां न जाने कब
फ़िराक़-ए-जान की नज़र हो गयी
इबादत-ए-इश्क़ न जाने कब
लतीफ़ा-ए-नफ़्स बन गुज़र गयी
ख़ुशबुओं का मंज़र न जाने कब
वीरानियों की नज़र हो गया
बहारों का इंतज़ार न जाने कब
वहशत की सर्द धुंध से गुज़र गया
यादों की तस्वीरें न जाने कब
ख़ुश्क अश्कों की नज़र हो गयी
इंतज़ार-ए-यार में न जाने कब
ज़िन्दगी तन्हां ही गुज़र गयी
फ़िराक़-ए-जान = Distances in Life
लतीफ़ा-ए-नफ़्स = Joke of Life
मंज़र = Scene / Landscape
वीरानियों = Desolation
वहशत = Solitude
ख़ुश्क अश्कों = Dry Tears
गुज़रती सर्द हवाओं की सरसराहट
गरजते बादलों की गड़गड़ाहट
बारिश से होती मौसम की हलचल
नदियों में गुज़रते पानी की कल कल
पेड़ों पर बैठी चिड़ियों की चहचहाहट
प्रकृति के रंगों में डूबी हर आहट
ख़ूबसूरत फूलों से सजे बागान
फसल से हरे भरे खेत खलिहान
समंदर की लहरों का सुरीला शोर
चांदनी रातों में तारों की शीतल डोर
पत्तों पर पड़ी ओंस की बूंदों की आन
प्रकृति के रंगों में डूबी मनुष्य ही शान
पर्वतों की ऊंची बर्फ़ीली चोटियाँ
झाड़ियों से आती झींगुरों की सीटियां
बोल उठता है प्रकृति का हर रूप
प्रकृति में ढलता मानव का स्वरुप
लहकती डगर से गुज़री पेड़ों की डालियाँ
प्रकृति के रंगों से सराबोर खूबसूरत गलियां
सर्द हवाओं में एक तपिश सी है
गरजती मेह में एक गर्दिश सी है
आशना-ए-अक्स निगाहों में लिए
उन बिन हस्ती बेआब आईने सी है
सोज़ रातों को तन्हां करती
फ़िज़ा में आज एक नमी सी है
नफ़्स-ऐ-उल्फत कुछ थमी सी हैं
हसरत भरी निगाहें कुछ झुकी सी हैं
चल रहे हैं सोज़ ज़हन में सवाल लिए
उन बिन जवाबों में एक कमी सी है
सोज़ रातों को और तन्हां करती
फ़िज़ा में आज कुछ नमी सी है
नसीम-ए-बैहर में एक कशिश सी है
ज़िक्र-ऐ-उल्फत में एक खलिश सी है
रफ्ता रफ्ता बढ़ते क़दमों तले
उन बिन ज़िन्दगी में एक कसक सी है
सोज़ रातों को कुछ और तन्हां करती
फ़िज़ा में आज फिर कुछ और नमी सी है