हर इरादा हर ख़्वाइश
हर ख़्याल हर उम्मीद
एक खाली शीशी में क़ैद
फ़लक की ओर तकते रहते हैं
हर आंसू हर मुस्कराहट
हर आह हर लफ्ज़
एक खाली शीशी में क़ैद
साहिल की ओर तकते रहते हैं
ख़याल फिर भी दुनिया घूम आते हैं
ख्वाइशें भी पर फड़फड़ा लेती हैं
लेकिन वक़्त की झिल्ली में क़ैद
हम यूँ ही उफ़क़ को तकते रहते हैं
हम यूँ ही उफ़क़ को तकते रहते हैं
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