Saturday, May 3

सुरूर



राह-ए-दहर पर पैगाम-ए-उल्फत
महराब-ए-जाँ तक आहटों में आते रहे
लफ़्ज़ों में वो जो न फरमा सके
सुरूर-ए-तबस्सुम से महकाते रहे

ज़िन्दगी के दायरों का अफसाना
सुनते सुनाते संग चलते रहे
किस्मत का लिखा न मिटा सके  
सुरूर-ए-इश्क रोज़ छलकाते रहे

गुज़ारिश की थी खुदा से कभी
ताउम्र संग हम कदम मिलाते रहे
मिला है आज वो मुज्तनिब साहिल
सुरूर-ए-तपिश में जिसकी पिघलते रहे 

समय से पहले, क़िस्मत से ज्यादा
हमें कुछ मिले, कभी ये नसीब ही न रहे 
बरस गुज़रे सोज़ साए महसूस करते
सुरूर-ए-अपिश में जिसकी तपते रहे


राह-ए-दहर = Path of Life
पैगाम-ए-उल्फ़त = Messages of Love
सुरूर-ए-तबस्सुम = Intoxicating Smiles
सुरूर-ए-इश्क = Love's Joy
मुज्तनिब साहिल = Evasive Shores
सुरूर-ए-तपिश = Pleasure of Warmth
सोज़ साए = Passionate Apparition
सुरूर-ए-अपिश = Rapture of Passion








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