Friday, April 20

कफस-ए-उल्फत से अर्ज किया है...



लघ्जिश-ए-मोहब्बत जो हुई हमसे उसे माफ करना...
हज्ज-ए-वस्ल में ज़ाहिर-ए-दर्द किया हो तो माफ करना...
महराब-ए-जान से तो न कभी भुला पाएंगे ए फिदायी तुझे...
तेरी मोहब्बत  की आस में धडकनें थम जाएँ तो माफ करना...

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अपना ले मुझे या खुद को पराया कर दे...
ए बिस्मिल मेरी मोहब्बत का कुछ तो फैसला कर दे...
रेगिस्तान सी बंजर यह जिंदगी हुई जाती है...
ए दिलसिताँ दफना दे रेत में ये नखलिस्तान बना दे...
एक तरफ़ा मोहब्बत कर थक चुके हैं हम...
ए शेह्दायी बेवफाई कर या थोड़ी वफ़ा का ही इल्म करा दे...
कब तक यूँ ऐतबार करेंगे ए काफिर तुझ पर...
भुला दे उसे या हमें ही इश्क में फ़ना होने कि इजां दे दे...

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