Saturday, February 2

आज फिर...



आज फिर वो मुताबस्सिम लम्हें याद आये 
आज फिर उल्फत के वो हसीन पल याद आये
समेटे बैठे थे आबगीनों में झलकती यादों को
के उन्हें देख न जाने क्यों ये पैमाने भर आये    

आज फिर न जाने क्यों....

आज फिर वो गुनगुनाये नगमे याद आये
आज फिर वो तर्ज़-ए-बयान-ए-उल्फ़त याद आये 
कहा तो चाहते थे बहुत कुछ उनसे मगर
के उनकी आवाज़ सुन न जाने क्यों ये लब थरथराये 

आज फिर न जाने क्यों....

आज फिर वो आतिशीं राह-ए-तलब याद आये
आज फिर वो शफ़क़-ए-उल्फ़त के पल याद आये 
राह-ए-दहर पर अक्स हमकदम बन चलते रहे      
के उनसे रूबरू हो न जाने क्यों ये कदम डगमगाए 

आज फिर न जाने क्यों....


...के आज फिर न जाने क्यों....



मुताबस्सिम = Laughing
आबगीनों = Water Bubbles
तर्ज़-ए-बयान-ए-उल्फ़त = Style of Describing Love
शफ़क़-ए-उल्फ़त = Afterglow of Love
आतिशीं = Passionate
राह-ए-तलब = Path of Desire
राह-ए-दहर = Path of Life

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