Thursday, January 17

तन्हाईयाँ



बे-अलफ़ाज़ खामोशियाँ बोलती हैं 

बे-नगमा सन्नाटे गुनगुनाते हैं 
दो पल हो गर साथ ख़याल उनके  
रंजीदा तन्हाइयाँ मुस्कुराती हैं

वक़्त का गुज़रना खामोश पैगाम है

राह-ए-उल्फत एक बहता पड़ाव है 
दो पल हो गर महसूस आहें उनकी
खुश्क तन्हाइयाँ मुअत्तर इर्म सी हैं

रूहों के दरमियाँ खामोश कशिश सी है

फासलों में एक अनकही खलिश सी है
दो पल हो गर बीते आगोश में उनके
इश्तियाक़ तन्हाइयाँ भी पुर-जोश सी हैं

आरा-ए-शाऊ से बनी परछाईं ज़िल-ए-यार सी है
सरसराती हवा में एक खामोश बेचैनी सी है
दो पल हो गर चले हमकदम बन उनके
बे-नफ्स तन्हाइयाँ भी इश्क में आबाद सी हैं




रंजीदा = Sad
मुअत्तर इर्म = Fragrant Paradise
खलिश = Pain
इश्तियाक़ = Craving
पुर-जोश = Passionate
आरा-ए-शाऊ = Slanting Rays
ज़िल-ए-यार = Shadow of lover
बे-नफ्स = soulless







No comments:

Post a Comment