रूबरू हुए जो हम उनसे ...
लफ़्ज़ों से दिल सोज़ अफ़साने लिखते गए
आप-बीती में पैगाम-ए-उल्फत पढ़ते गए
ख़्वाबों से नए कलाम अर्ज़ करते गए
इरादों से नए अरमान सजाते गए
रूबरू हुए जो हम उनसे ...
लबों पर खामोशियों के तराने छिड़ गए
महक उनकी ज़हन में हम समाते गए
पलकों पर लम्हों के अक्स बनते गए
रुखसार सुर्ख-ए-गुलिस्तान होते गए
रूबरू हुए जो हम उनसे ...
बज़्म-ए-मोहब्बत हम सजाते गए
नगमा-ए-इश्क़ गुनगुनाते गए
कदम ख़ुद-ब-ख़ुद थिरकते चले गए
हम उन में, वो हम में, समाते चले गए
रूबरू हुए जो हम उनसे ...
... हम उन में, वो हम में, समाते चले गए !!
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