Saturday, August 11

तन्हा सफर...


"तन्हा सफर" एक दोस्त के जज़्बातों को, जो मेरे दिल को छू गए और अपने से लगे, उन्हें अपने लफ़्ज़ों में लिखने का प्रयास है| इस कविता का मूल श्रेय उसी दोस्त को जाता है... "फर्क सिर्फ इतना है कि "वो" जिए जा रहे थे... और "हम" आज भी यूँ ही जिए जा रहे हैं..."


एक दूसरे की मौजूदगी से अनजान हम,
सिफर का तन्हा सफर तय किये जा रहे हैं...
वक्त के इस गरमी-ए-रफ़्तार से बहते दरिया में,
एक बे-अंजुमन सी नीरस जिंदगी जिए जा रहे हैं...

न कोई गिला है न शिकवा कोई जिंदगी से,
तन्हाई में अब हम हर यौम बसर किये जा रहे हैं...
खल्वत-ए-दिल की तपती सर-ज़मीन पर,
बे-लगाम प्यार की एक बौछार को तरसे जा रहे हैं...


न वोह रहे, न उनका अक्स ही साथ है,
बस यादों में उनका एहसास ढूंढे जा रहे हैं...
हर पल दिखाई देती है सूरत उनकी,
ज़ावियाह-ए-दिल में शायद वो आज भी बसर किये जा रहे हैं...

मशरूफ हैं वो नयी खुशियों के दामन में,
और हम तन्हाई के आलम में जिए जा रहे हैं...
उनकी खुशियों से छलकते पैमाने को,
हर पल छलकती निगाहों से देखे जा रहे हैं...

इल्म नहीं है के रूबरू हो पाएंगे उनसे कभी,
फिर भी उनकी आवाज़ सुनने को तरसे जा रहे हैं...
हाल-ए-दिल ग़मगीन था उस ढलती शाम
रूहानी समां में आज़र्दाह दिल को संभाले जा रहे हैं...

अचानक एहसास हुआ उनके करीब होने का,
या हम ख्यालों में उनके शीरीं लफ्ज़ सुने जा रहे हैं...
सामने हैं वोह खड़े किसी से कुछ बयान करते,
पर उनका अक्स समझ हम अपनी राह चले जा रहे हैं...

एक दूसरे की मौजूदगी से अनजान हम,
सिफर का तन्हा सफर तय किये जा रहे हैं...
जो खुशनुमा लम्हे बीते थे साथ उनके,
उन्ही की यादों में अपनी राह चले जा रहे हैं...


गरमी-ए-रफ़्तार = Fast Moving
बे-अंजुमन = Alone
यौम = Day
खल्वत-ए-दिल = Solitude
ज़ावियाह-ए-दिल = Corner of the heart
आज़र्दाह = Gloomy, Sad


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