Thursday, August 30

कशिश


कशिश-ए-मोहब्बत हर गम भुला देती है...
खुली पलकों के दामन में ख्वाब सजा देती है...
आतिशीन रुखसार पर पड़ती बारिश की ये बूँदें,
चश्म-ए-तर झुकी पलकों में अरमां सजा देती हैं...

विसाल-ए-यार का ज़िक्र हर अजीयत भुला देता है...
थरथराते लबों पर अक्सर मुस्कुराहट सजा देता हैं...
तमन्ना-ए-आगोश में कल्ब-ए-मुज्तर,
अक्स-ए-सोज़ का नक्श निगाहों में सजा देता है...

उनके अक्स एक झलक ही बेकरार कर जाती है...
रह रह आब-ए-चश्म का दरिया बहा जाती है...
कैसे कहें हाल-ए-दिल, करें कैसे गुजारिश उनसे,
हसरत-ए-दीदार की आह लबों पर ही थम जाती है... 



आतिशीन रुखसार = Fiery/Hot Cheeks                              विसाल-ए-यार = Meeting with a Lover
अजीयत = Torture                                                         कल्ब-ए-मुज्तर = Restless Heart
अक्स-ए-सोज़ = Reflection of Passion                              आब-ए-चश्म = Tears
हसरत-ए-दीदार = Longing to see


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