Friday, March 1

आज...



आज...
ओंस की बूंदों में एक आतिशीं चमक सी है... 
जाने क्यों लगा उनके अक्स की एक मौजूदगी सी है...

आज...
तपती हुई धूप में एक सर्द नमी सी है... 
जाने क्यों लगा उनके आश्कों की झरी सी है ...

आज...
सरसराती सर्द हवा में एक तपिश सी है... 
जाने क्यों लगा उनकी सांसें कुछ सोज़ सी है...

आज...
लहर-ए-कुल्ज़ुम में एक शरारत सी है... 
जाने क्यों लगा उनके रूह की एक झलक सी है...

आज...
पतझड़ के इस आलम में भी एक महक सी है... 
जाने क्यों लगा उनके आगोश की कुर्बत सी है...

आज...
चर्ख-ए-नीले-फाम में शफ़क़ की एक झलक सी है...
जाने क्यों लगा उनकी ख्वाइशों की अपिश सी है...

आज...
हर आवाज़-ए-जरस एक खुशनुमा नज़्म सी है... 
जाने क्यों लगा लबों पर उनके लफ़्ज़ों की खनक सी है...

आज...
तन्हा राहों पर पंखुड़ियों की एक चादर सी है... 
जाने क्यों लगा उनके आने की एक आहट सी है...






लहर-ए-कुल्ज़ुम = Waves in the Sea
चर्ख-ए-नीले-फाम = Blue Sky
आवाज़-ए-जरस = Sound of Bells

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