Sunday, May 6

एक एहसास सा...


अनजान था वोह शख्स जो मिला इन राहों में...

लम्हा दर लम्हा हुआ वोह कुछ जाना पहचाना सा...
चला वोह संग इन राहों पर बन एक हमकदम...
लम्हा दर लम्हा एक रहगुजर लगा हमसफ़र सा ...

खूबसूरत थे वोह पल जो संग गुज़ारे थे हमने...
ख्वाबों में भी लगता है वोह एक हकीकत सा ...
चंद दिनों में नजदीकियां दूरियां हुई हैं अब उनसे...
फिर भी निगाहें बंद करूँ तो लगता है साथ उनका करीब सा...

चले आये हैं दूर उनसे उनही की बात का मान रख...
फिर भी हर धड़कन को है उनके बुलावे का इंतज़ार सा ...
न कोई गिला है, न है शिकवा शिकायत कोई उनसे...
है तो सिर्फ हम पर ऐतबार न करने का दिल में एक गहरा गम सा ...

खुशियों और सुकून के लिए उनकी जो किया हमने...
उस दास्ताँ को न सुनने, न ऐतबार करने का है हमें हुज्न्ल सा ...
बैठे हैं मीलों दूर उनसे, पर ख़याल उस चार दीवारी में कैद हैं...
हमारा न होते हुए भी जो लगता है हमें मोहब्बत का एक आशियाँ सा...

मर्ज़-उल-मौत का इल्म होते हुए भी छोड़ आये हैं तनहा उन्हे... 
करीब नहीं हैं वोह अब, पर इस दिल में रहेगा हमेशा उनके लिए एक घरोंदा सा...
दुआ करेंगे हमेशा उनकी सलामती की और हर पल हर कदम इन्तेज़ार भी...
करीब नहीं है हम अब, पर छोड़ आये हैं उनके दर अपना एक एहसास सा...


उनका यहाँ एक एहसास सा ... हमारा वहाँ एक एहसास सा...

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