ये शेर नीचे से ऊपर पढ़े जाएँ तो एक कड़ी सी बनती नज़र आयेगी... :)
उन्हे नहीं है गुमान के वोह हमारे कितने करीब हैं...
जी रहे हैं हम के वोह हमें अपनी साँसों से भी अज़ीज़ हैं...जिस्म हैं दूर, पर दिलों में हर पल है एक कसक उठा करती ...
तूफानों के बीच भी उस साहिल पर ही है नज़र हमारी थमा करती...
महफ़िल खूब सजी है, पर कुछ अर्ज करने की अब ख्वाइश न रही ...
लफ्ज़ लबों पर थम गए, उल्फत-ए-दिल-ए-कास्ता सुपुर्द-ए-ख़ाक हो रही ...
कर आब-ए-चश्म की हसरत-ए-दीदार को इस दिल में दफन ...
नफ्स-ए-जिस्म है, पर सिसकते हुए अब रूह-ए-मोहब्बत है दम तोड़ रही ...
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एक सौंधी सी झलक दिखा चली जाती है, पलकों पर यादों की बूँदें दिए...
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तुमसे दूर जाने का हमारा कोई इरादा ना था...
सदा साथ देने का तुमसे एक वादा ही चाहा था...
तुम याद न करोगे हमें यह जानते थे हम...
पर भुला दोगे इतनी जल्द इसका अंदाजा ही ना था...
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मेरे दिल को यूँ जलाना, तेरा ईमान हो शायद...
मेरी तरह तेरे सीने में भी कोई तूफ़ान हो शायद...
आजमा न तू मुझे इतना, आह भी न हो और दम निकल जाए...
तेरे वजूद की तरह कहीं मेरे वजूद में, तेरी भी जान हो शायद...
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कहते हैं के इन्तेज़ार की कोई हद्द नहीं होती...
कहते हैं के खुशियाँ दायरों में कैद नहीं होती...
वो ले कर अपने हाथों में खंजर, हमसे मोहब्बत का इज़हार करते रहे...
आजमा न तू मुझे इतना, आह भी न हो और दम निकल जाए...
तेरे वजूद की तरह कहीं मेरे वजूद में, तेरी भी जान हो शायद...
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कहते हैं के इन्तेज़ार की कोई हद्द नहीं होती...
कहते हैं के खुशियाँ दायरों में कैद नहीं होती...
हद्द और दायरों से उबर कर देख ए काफिर...
के बेपनाह मोहब्बत की कोई सरहद नहीं होती...
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वो ले कर अपने हाथों में खंजर, हमसे मोहब्बत का इज़हार करते रहे...
मदहोश हो हम भी आँखें मूंदे, उनके लफ़्ज़ों पर ऐतबार करते रहे...
रोज हुआ उनसे क़त्ल हमारा, फिर भी हम दिल-ओ-जान निसार करते रहे...
सुर्ख हैं आँखें, सूखे हैं अश्क, ना जाने क्यों फिर भी उनसे उल्फत-ए-इकरार करते रहे...
टूटा है यह दिल, चूर है यकीन, न जाने फिर भी उनके आने का इन्तेज़ार करते रहे...
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टूटा है यह दिल, चूर है यकीन, न जाने फिर भी उनके आने का इन्तेज़ार करते रहे...
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