समुद्र की नीली लहरों पर, तुम्हारी निगाहों की चमक सजी है
रेतीली इस नम ज़मीन पर, तुम्हारे आगोश की कमी सी है...
करीब आ, दामन तर कर, न जाने क्यों लौट जाती हैं...
ज़ेहन में बसी यादें भी अब आबगीनों की अमानत सी है...
घने काले बादलों पर तुम्हारी मुस्कुराहट की सुन्हेरी लकीरें सजी है...
उफक पर बिखरे आतिशीन समां में, तुम्हारे आगोश की कमी सी है...
हलकी सर्द हवा सरसराहट जगा, न जाने क्यों गुज़र जाती है...
आगोश-ए-तस्सवुर्र भी अब आब-ए-तल्ख़ की अमानत सी है...
आबगीनों = Water Bubbles
उफक = Horizon
आबगीनों = Water Bubbles
उफक = Horizon
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