Friday, July 6

इसरार-ए-हयात

हर्फ़-ए-"इसरार-ए-हयात"!! 


इसरार-ए-हयात की किताब जो खोली
अहसास-ए-उल्फत का एक झोंका सा आया
जिंदगी के जो चंद हर्फ़ लिखे थे हमनें
था उन पर अब उनकी यादों के सुर्ख रंगों का साया
ख्वाब हमारे दस्त-ए-कातिल के मेहरबान हुए
अरमानों पर आब-ए-चश्म का एक मातम सा छाया
अनकहे लफ्ज़ गम-ए-फुरकत में दफन होते चले गए
दरमियान के इन फासलों ने वजूद तक भुलवाया 
रह रह सोचते हैं कहाँ किस संग कैसे जुड़े थे कभी
रफ्ता रफ्ता हर एक आतिशीन मरासिम धुंधलाया


रफ्ता रफ्ता ................हर मरासिम धुंधलाया !!


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