Tuesday, July 24

चंद बिखरे खयालात...



मुस्कुराते हैं लोग, गम छुपाते हैं लोग,
खुशियों में कम, गम में कुछ ज्यादा मुस्कराते हैं लोग...
गिला करें तो किस से,
जब मुस्कुरा कर, अपनों से ही हाल-ए-दिल छुपाते हैं लोग...


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दूरियों के सिलसिले बढते गए, पर रूह हमारी जिंदा रही...
वार-पर-वार उनके हम सहते गए, पर रूह हमारी ज़िंदा रही...
मेहराब-ए-जान पर लफ़्ज़ों का वार एक पल में ऐसा हुआ...
रिसते हुए दिल से आब-ए-चश्म का एक दरिया सा बहा...
........नियामत है खुदा की, के फिर भी हमारी तडपती रूह जिंदा रही...

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दिल के किसी कोने में छुपी हसरतों को,  
जिंदगी देने की तमन्ना हम रखते हैं...
नामुमकिन है यह इस जन्म में शायद, 
क्योंकि जितना है हमे उनसे प्यार,
उतनी ही नफरत वोह हमसे करते हैं...


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ख्वाब और ख्वाईशें तो हमारी बहुत हैं मगर... 
सिर्फ चाहने से हर ख्वाइश हकीकत नहीं बनती...
दिल-ओ-जान से इबादत जिनकी करते हैं ...
लाख चाहने पर भी उनसे मुलाकात नहीं होती...


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उनके अक्स को रोज देखते हैं पलकों की चिलमन में...
फिर भी हर पल उनके दीदार को तरसते हैं...
उनसे यह खामोश सी दूरियां एक हकीकत बन चुकी है...
फिर भी हर पल उनके आगोश की तम्मन्ना करते हैं...


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उनको भुला पाना अब हमारे बस में नहीं...
के शाम-ओ-सहर ख्यालों में सिर्फ वो ही बस्ते हैं...
निगाहें खुली हों या हो बंद...
मुस्कुराते हुए हमारे ख़्वाबों में सिर्फ वो ही बस्ते हैं...


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बाहें पसारे, पलकें बिछाये उनका इंतेज़ार हम करते हैं...
उनसे मोहब्बत करने का गुनाह हम आज भी करते हैं...
हसरत-ए-दीदार का जला कर हम चिराग...
उनसे रूबरू होने का आज भी बेसब्री से इंतेज़ार करते हैं...




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