Saturday, June 2

रफ्ता रफ्ता...



"रफ्ता रफ्ता" जिंदगी की राहों पर चलते चलते ...
कुछ रिश्ते जिंदगी के मायने बदल जाते हैं... 
चाहतों को नए अंजाम दे जाते हैं... 
उम्मीदों को नए मकाम दे जाते हैं... 
एक ऐसे ही खूबसूरत रिश्ते का कलाम है "रफ्ता रफ्ता"...


रफ्ता रफ्ता जिंदगी रेत सी फिसलती जाती है...
रफ्ता रफ्ता समय की डोर छूटती जाती है...
रफ्ता रफ्ता उनसे नजदीकियां बढती जाती है...
रफ्ता रफ्ता उनसे हुई दूरी खलती जाती है...


जिंदगी की मुस्कुराहट करने लगी है इतना करम क्यों न जाने...
करवट लेने लगे हैं अरमान, फिर भी हैं आँखें नम क्यों न जाने...
रफ्ता रफ्ता मुस्कुराते हुए अश्कों की लड़ी सी बन जाती है ...
रफ्ता रफ्ता जिंदगी रेत सी और फिसलती जाती है...


समय बदलते बदलते बदल जाता है यूँ ही क्यों न जाने...
दोस्ती प्यार में बदल जाती है कैसे यूँ ही क्यों न जाने...
रफ्ता रफ्ता डगर संग चलने की सजाई जाती है ...
रफ्ता रफ्ता समय की डोर हाथों से और छूटती जाती है...


नजदीकियों ने अरमानों की सेज सजाई क्यों न जाने...
उम्मीदों के फूलों पर इश्क परवान चढ़ने लगा क्यों न जाने...
रफ्ता रफ्ता मेरी जान उनमें, उनकी जान मुझमें समाये जाती है...
रफ्ता रफ्ता उनसे नजदीकियां और बढती जाती है...


दूरियों का दरमियान आगाज हुआ कैसे क्यों न जाने...
लफ़्ज़ों के तीर दे गए कुछ ऐसे ज़ख्म क्यों न जाने...
रफ्ता रफ्ता यादें उनकी इस दिल को चीरे जाती है...
रफ्ता रफ्ता उनसे हुई दूरी और खलती जाती है...


रफ्ता रफ्ता जिंदगी रेत सी और फिसलती जाती है...
रफ्ता रफ्ता समय की डोर हाथों से और छूटती जाती है... 
रफ्ता रफ्ता उनसे नजदीकियां और बढती जाती है...
रफ्ता रफ्ता हुई दूरी से उनकी कमी और खलती जाती है...


जिंदगी की डोर छोड़ नजदीकियां दूरियों में गुम हुई चली जाती हैं... 
जल्द हमें आगोश में कर लो, के फुरकत-ए-हमसफ़र बेइन्तेहाँ खलती है!!

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