Saturday, June 16

रश्क होता है...



दूरियां हैं दरमियान कुछ इस कदर बढ़ी, के हमें अब सबसे "रश्क होता है..."


रश्क होता है उस हर बूंद से, जो उन्हें छू कर ज़मीन को नम कर जाती है...
रश्क होता है उस सर्द नसीम-ए-शब् से, जो उन्हें छू कर पैगाम लाती है...
रश्क होता है उस सौंधी धूप से, जो उन्हें आगोश में ले जहां रोशन कर लेती है...
रश्क होता है उस चादर-ए-महताब से, जो उन्हें इल्म-ए-हसीन-तस्सवुर रोज कराती है...


रश्क होता है उस नम ज़मीन से, जिन्हें उनके नक्श-ए-पा नसीब होते हैं...
रश्क होता है उस सूनी डगर से, जिस पर मील का पत्थर बन वोह थामें हैं...
रश्क होता है उस हर नज़्म से, जिन्हें उनके दस्त ख़्वाबों में तराशते हैं...
रश्क होता है उस हर तसव्वुर से, जो रोज हमें उनका ही दीदार करते हैं...


रश्क होता है उस हसीन समां से, जो उनकी आवाज की मदहोशी में सराबोर हो जाता है...
रश्क होता है उस इत्र से, जो बस कर हमारे ज़हन में रोम रोम उनका महका जाता है...
रश्क होता है उस हर सुर्ख बूँद से, जो उनके दिल से गुजर रगो में दौड़ा करती है...
रश्क होता है उस आईने से, जिसे उस चाँद का दीदार-ए-अक्स रोजाना होता है...


रश्क होता है........!! क्या करें.......?? उनके करीब की हर चीज़ से हमें अब रश्क होता है....!!



No comments:

Post a Comment