Thursday, June 7

ख़ामोशी...


"ख़ामोशी" में अर्ज किया है ...

रफ्ता रफ्ता हर किश्त चुकाते हैं हम..
ज़ख्म परे रख प्यार निभाते हैं हम...
----------------------------------------------------------------------
ख़्वाबों को लफ़्ज़ों में यूँ ही अर्ज कर देती हूँ...
शायरी में राज़-ए-निहां बयान कर देती हूँ...
कुछ अपनी, कुछ उनकी दास्तान-ए-हसरत का है गुमान...
के हर्फ़-ए-सद-तलब में रूह-ए-मोहब्बत बयान कर देती हूँ...
----------------------------------------------------------------------
पलकों की चिलमन से ढलकती ओंस में नज़ारे तो बहुत देखे...
झुकी नज़रों से झरी इन बूंदों में पैगाम तो बहुत देखे...
खामोश कुछ इस कदर हुई हैं उनकी ओर रुख्सतर राहें...
पाने के लिए उन्हें कुछ नहीं तो मील का पत्थर ही बन देखें...
----------------------------------------------------------------------
जिन निगाहों से कभी नूर-ए-उल्फत छलका करता था...
आज उन्ही में हमारे आशियाँ की मय्यत सजी दिखाई देती है...
----------------------------------------------------------------------
इश्क के पैमाने छलकाए थे जिन निगाहों ने कभी...
जाम-ए-उल्फत पिलाये थे जिन निगाहों ने कभी...
सैलाब-ए-नफरत इस कदर गुज़रा ज़ेहन से उनके...
के नुमाइश-ए-बेबस-आरमान हो रही है उन्ही में अभी...
----------------------------------------------------------------------
कफस-ए-उल्फत से निकले इस इश्क की कोई इन्तेहाँ नहीं...
महराब-ए-जान से निकले एहसासों की कोई सरहद नहीं...
खुश्क सा है फिर भी एक एहसास इन थर्राए लबों पर...
शायद पयाम-ए-दर्द है के उन्हें अहाल-ए-इश्क की एहमियत नहीं...
----------------------------------------------------------------------
लोग शोर सुन कर जाग जाते हैं..
... और हमें उनकी ख़ामोशी सोने नहीं देती...
----------------------------------------------------------------------


1 comment:

  1. log shor sun kar jaagte hain aur hame un ki khamoshi sone nahi deti ...... depth of devotion

    ReplyDelete