Saturday, June 16

ज़रा रूमानी हो जाएँ...



आसमान से झरझराती बूंदों का नशेमन पर असर है... "ज़रा रूमानी हो जाएँ"!!


सर्दियों की नासीम-ए-सहर का है खुमार, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
सब्जे पर दमकती ओंस का है तिलिस्मी असर, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ... 
गुल-ए-तर गुलमोहर का है खूबसूरत सुर्ख बिछोना, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
वक्त ने बांधा है एक बेहद हसीन समां, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
........................................................ज़रा रूमानी हो जाएँ...


हरारत सी है गर्मियों की नसीम-ऐ-शब में, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
स्याह आसमान पर चाँद तारों का है समां, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
शब्-ए-उल्फत की इस नम रात में, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
वक्त ने बांधा है एक बेहद हसीन समां, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
........................................................ज़रा रूमानी हो जाएँ...


आब-ए-बौछार से बंधा है कुछ नशीला समां, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
नम है ज़मीन, हलकी सी सर्द है यह हवा, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
रोज-ए-अब्र से झांकते कोस-ए-कुज़ह के तले, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ... 
वक्त ने बांधा है एक बेहद हसीन समां, आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
........................................................ज़रा रूमानी हो जाएँ...


आतिश-ए-नशेमन को आब-ए-हयात से सराबोर कर आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...
वक्त ने जो बांधा है यह बेहद हसीन समां, हम-आगोश हो आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ...





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