Wednesday, June 27

अच्छा लगता है...


अहाल-ए-दिल की यादों को लफ़्ज़ों में पिरोना "अच्छा लगता है"!!

उनके ख्यालों में गुम सुम रहना अच्छा लगता है...
ख़ामोशी से दर्द-ए-दिल सहना अच्छा लगता है...
रूबरू हो, कुछ न कह पाना अच्छा लगता है...
प्यार में कुछ कुछ पा बहुत कुछ खो देना अच्छा लगता है...
डरते हैं कहीं मिल कर अब बिछड़  न जाएँ हम तुम...
न चाहते हुए भी दूर से दीदार करना अब अच्छा लगता है...

तारों से घिरे चाँद में उनका अक्स अच्छा लगता है...
फिजाओं में उनकी खुशबू का भ्रम अच्छा लगता है...
रूबरू हो नज़रें चुरा गुफ्तगू करना अच्छा लगता है...
उनके एहसास में सरबोर मेंह में भीगना अच्छा लगता है...
डरते हैं कहीं यूँ करीब आ बिछड़  न जाएँ हम तुम...
न चाहते हुए भी अपने दायरों में सिमटना अच्छा लगता है...

पिया मिलन के इंतेज़ार में राहें तकना अच्छा लगता है...
सूने दिल की गहराइयों में उतरना अच्छा लगता है...
रूबरू हो गिले-शिकवे मिटा रूठना-मनाना अच्छा लगता है...
आगोश-ए-सनम में खुद को खो उनको पाना अच्छा लगता है...
डरते हैं कहीं इतने करीब आ फिर से बिछड़ न जाएँ हम तुम...
न चाहते हुए भी दरमियान फासलों का होना अच्छा लगता है...


शायद इसीलिए न चाहते हुए भी .............................................
...............................दरमियान फासलों का होना अच्छा लगता है!!



1 comment:

  1. मासूमियत पर फ़ना हो जाना अच्छा लगता है..

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