एक दोस्त ने शायरों की महफ़िल से रुखसती की इज़ाज़त कुछ इस ढंग से मांगी की हमें उन्हें इज़ाज़त देने का मौका ही नहीं मिला और वोह महफ़िल से अलविदा कह चले गए ...
वोह अपना कलाम कुछ यूँ कह कर चले गए...
"रुखसत चाहते हैं अलविदा कहा चाहते हैं
शायरों की इस महफ़िल से हम
अपनी गुमशुदगी दर्ज किया चाहते हैं
मयस्सर ना हुए हैं हम अभी, न हुआ चाहते हैं
गुज़ारिश अर्ज-ए-महफ़िल है यह हमारी
खुदा के साथ बस एक लम्हा चाहते हैं
एक इल्तेजा है हमारी, कबूल ज़रूर करना
कुछ वक्त हम अपने साथ बिताया चाहते हैं"
"रुखसत चाहते हैं अलविदा कहा चाहते हैं
शायरों की इस महफ़िल से हम
अपनी गुमशुदगी दर्ज किया चाहते हैं
मयस्सर ना हुए हैं हम अभी, न हुआ चाहते हैं
गुज़ारिश अर्ज-ए-महफ़िल है यह हमारी
खुदा के साथ बस एक लम्हा चाहते हैं
एक इल्तेजा है हमारी, कबूल ज़रूर करना
कुछ वक्त हम अपने साथ बिताया चाहते हैं"
हमारा इजाज़त देने का अंदाज़ कुछ ऐसा था...
"दोझाक से जन्नत की राह दिखा कर...
"दोझाक से जन्नत की राह दिखा कर...
यादों से विसाल-ए-यार के ख़याल की ओर इशारा कर...
पिंजर से खुले आसमान का रुख दिखा कर...
आप हमसे रुखसती की इजाज़त क्यों कर पाना चाहते हो?
हमें अपने ही पिंजर की कैद से आज़ाद कर...
हमसे खुद अपनी आज़ादी गुजारिश कर...
खुद से रूबरू हो खोज वापस लाने का वादा कर...
आप हमसे ही रुखसती की इजाज़त क्यों कर पाना चाहते हो?
भाया तो नहीं आपका यूँ जाना अलविदा कह कर...
दिल दुखी है आपकी यह इल्तेजा कबूल कर...
दुआ करते हैं लौट आओ खुद को जल्द पा कर...
रहेगा हमें इन्तेज़ार महफ़िल-ए-शायरी में, जब भी आना चाहते हो..."
... हमें इन्तेज़ार रहेगा...
पिंजर से खुले आसमान का रुख दिखा कर...
आप हमसे रुखसती की इजाज़त क्यों कर पाना चाहते हो?
हमें अपने ही पिंजर की कैद से आज़ाद कर...
हमसे खुद अपनी आज़ादी गुजारिश कर...
खुद से रूबरू हो खोज वापस लाने का वादा कर...
आप हमसे ही रुखसती की इजाज़त क्यों कर पाना चाहते हो?
भाया तो नहीं आपका यूँ जाना अलविदा कह कर...
दिल दुखी है आपकी यह इल्तेजा कबूल कर...
दुआ करते हैं लौट आओ खुद को जल्द पा कर...
रहेगा हमें इन्तेज़ार महफ़िल-ए-शायरी में, जब भी आना चाहते हो..."
... हमें इन्तेज़ार रहेगा...
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