Wednesday, January 11

कश्मकश

खामोश लबों की मुस्कराहट में ...
बिन लफ़्ज़ों की कुछ पोशीदा सी बातें हैं...
इन खामोश पोशीदा सी बातों में ...
कुछ बेनकाब प्यार की सौगातें, 
कुछ चाहत की बरसातें हैं ...
कुछ बातों को हम मुद्दतों से,
अपने सीने में छुपाये बैठे हैं...
कुछ पाए बिना ही, सब गवाएँ बैठे हैं...
यह इल्म है हमें कि नहीं हों सकते तुम्हारे...
फिर भी न जाने क्यों दिल-ओ-जान लुटाए बैठे हैं...
क्या करें धड़कनों के सैलाब का...
जो हर पोशीदा ख्याल को मिटाए देता है...
हो तुम किसी और के, 
फिर भी खुद को समझा नहीं पाए हैं...
सही गलत का तर्क करते बीत रही है मुद्दते ...
फिर भी तुमसे दूर होने का तर्क,
इस कमबख्त दिल को समझा नहीं पाए हैं...
जानते हैं एक मील का पत्थर हैं हम,
जिंदगी की राह में तुम्हारी,
न चाह कर भी खुशियों की राहों में,
एक दीवार ही बन पाए हैं...
सहर की इन फिजाओं में, 
शब् की इन वीरानियों में ...
कश्मकश में फंसा है यह दिल...
ये मोहब्बत नहीं है मेरी गर तुम्हारे लिए ...
तो बताओ हमें,
मायने क्या है ए ज़ालिम इश्क के, तुम्हारे लिए??


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