Friday, January 20

मन की उड़ान ...

आज कुछ अलग सा लिखने का मन हुआ और हम शब्दों में बह से गए...

इस मन की चंचलता देखो
देखो तो इसकी उड़ान
सपनों में जो विचरण करता है
अपनी ही धुन में यह तो जीता है
सोच सोच कुछ बीती बातें 
यह ताना बाना बुनता है
जो न था न है न होगा 
हर घड़ी स्मरण उसका करता है 
मोह माया में बंधा ये 
निस दिन यह जप करता है  
आओगे तुम कब तुम मेरे दर
टकटकी बांधे हर डगर तकता है 
पेड़ों की डालों से गुज़री 
शीतल हवा से पूछा करता है 
हैं कहीं वोह आस पास
या दूर से संदेसा लाती हो 
ऐसा ही है तो उन्हे भी 
क्या हमारी याद दिलाती हो???

No comments:

Post a Comment