Wednesday, January 18

अश्कों की बूँदें...

सर्द फिजाओं की ओंस से लिखा यह पैगाम-ए-कलाम...




"ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
उनके आने की राह पर टिकी है हमारी निगाहें...
दस्तक-ए-मोहब्बत के इन्तेज़ार में ...
बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें...


ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
लब थरथराए, कुछ और नम हुई हमारी निगाहें...  
इज़हार-ए-मोहब्बत के इन्तेज़ार में ...
बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें...


ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
डरते हैं, रूबरू होते ही छलक न जाएँ यह निगाहें ...
हिजाब-ए-हया ओढ़े इश्क है इन झुकी हुई पलकों में ...
के बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें...


... ओंस सी पलकों पर थमी हैं कुछ अश्कों की बूँदें...
बीते हैं यूँ ही दिन और गुजरी हैं तन्हा रातें ..."

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