Thursday, January 19

वो और हम...

नज़रें उठाते हैं तो, अपना अक्स उनकी आँखों में पाते हैं...
नज़रें झुकाते हैं तो, पलकों पर पड़ी शबनम में उनका अक्स देख जाते हैं...
दूरियां तो हैं मगर, उनकी आहट को अपने ज़ेहन में पाते हैं...
निगाहों निगाहों  में, न जाने वोह क्या कुछ कह जाते हैं...
बेबाक हों वोह हमारे दामन पर, सर रख सो जाते हैं...
वोह जाग न जाएँ इस डर से, हम धडकनों को रोक लेते हैं...
लबों को उनके चूमना च्चते हैं, मगर उनकी मुस्कुराहट में खो जाते हैं...
बेखयाली का आलम है कुछ ऐसा उनके आगोश में ...
के हम सब कुछ भुलाये उनकी जुल्फों में खो जाते हैं...

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