Thursday, January 19

ख्वाइश ...


झुकी झुकी सी इन पलकों में, आब-ए-चस्म के पैमाने है...
रुके रुके से इन लबों पे, पैगामे-ए-इकरार के अल्फाज़ है...
खुली खुली सी इन बाहों में. उनके आगोश की खलिश है...
थमी थमी सी इन धडकनों में, उनके क़दमों की आहट है...
झुके रुके खुले थामे, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपको चाहने की है, कुछ आपको पाने की है...

चुप चुप रहते हैं, मगर पलकें छलक जाती है...
हौले हौले मुस्कुराते हैं, पर हया झलक जाती है...
भीनी भीनी खुशबुएँ भी आपका पैगाम लाती है...
सीली सीली सी हवाएं, यादों में सराबोर किये जाती है...
चुप हौले भीनी सीली, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपकी चाहत की है, कुछ आपको पाने की चाहत है...

झुके रुके खुले थामे, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपको चाहने की है, कुछ आपको पाने की है...
चुप हौले भीनी सीली, हमें ख्वाइश कुछ और नहीं...
सिर्फ आपकी चाहत कि है. कुछ आपको पाने की चाहत है...
इकरार-ए-इश्क हो न हो, ख्वाइश-ए-बेबाक-मोहब्बत कायम है...
इज़हार-ए-इश्क हो न हो, नूर-ए-जन्नत की चाह कायम है...

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