Tuesday, January 3

मुलाकात उनसे कुछ ऐसी हुई...



मुलाकात उनसे कुछ ऐसी हुई...
बातों ही बातों,निगाहों ही निगाहों में बात कुछ ऐसी हुई...
खोये कुछ इस कदर कि इल्म ही ना रहा...
कि लम्हों के कब दिन और कब रातें हुईं...


इज़हार-ए-मोहब्बत जो हमने किया ...
जज्बातों की अफरा तफरी कुछ ऐसी हुई ...
खामोशियों में कुछ कहा, कुछ कह न पाए हम...
हौले हौले नजदीकियां कुछ ऐसी हुई...


जूनून-ए-मोहब्बत का आलम कुछ इस कदर छाया ...
उनकी निगाहों में मासूमियत कुछ ऐसी पाई ...
ना इरादे जान पाए, ना जज़्बातों का ही इल्म हुआ ...
ना समझ ही पाए कब कैसे क्यों नजदीकियां दूरियां हुई...


दर्द-ऐ-दिल का इल्म तब हुआ जब किनारे हुए...
कश्ती थी डूबी और हम थे मझधार में तन्हा खड़े हुए...
अब ना साथ है उनका, ना अरमानों की वोह शाम...
ना उनकी निगाहों की गहराई, ना जुल्फों का पैगाम...


लेकिन ज़हन में अब भी धडकती है उनकी आवाज़...
महकती है अब भी खुशबू उनकी ज़हन में बसी हुई ...
उनके आगोश का एहसास यूँ है यादों में बसा...
जैसे की कल ही हो उनसे मुलाकात हुई...


जैसे की कल ही हो उनसे मुलाकात हुई...

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