Wednesday, December 12

जाने


कोमल लबों का हिलना ही क़यामत ढा जाता है
जाने होगा क्या हश्र-ए-हयात जब वो मुस्कुरायेंगी
पलकों का झुकाना ही धड़कनों को थामे देता है
जाने होगा क्या हाल जब वो नैनों से नैन मिलाएंगी

उनके क़दमों की आहट धड़कन तेज कर जाती है
जाने होगी कैसी कैफियत जब वो करीब आती नज़र आयेंगी
समां में बसी उनकी महक कई ख्वाईशें जगा जाती है
जाने होगा क्या अंजाम-ए-उल्फत जब वो करीब आएँगी    

छम छम करती पायल एक मधुर समां बाँध जाती है
जाने होगा कैसा आलम जब वो नगमा-ए-जान बन जाएंगी
चूड़ियों की खनखनाहट आतिशीन अरमां जगा जाती है
जाने होगा कैसा वो करार जब वो आगोश में समायेंगी   

सिन्दूर की रंगत शफक-ए-वफ़ा की राह दिखा जाती है 
जाने होगा कैसा मंज़र जब वो हमकदम बन राह सजाएंगी  
हिना का गहरा रंग उनके ख़्वाबों का अक्स दिखा जाता है 
जाने होगी कैसी वो तस्वीर जब वो नक्श-ए-ख्वाब बनायेंगी 

घूंघट में छुपा चाँद रोम रोम उजला कर जाता है
जाने होगी कैसी वो शब् जब वो घूंघट उठाएंगी
ज़र-ए-लब से लिया नाम कुरबतें जगा जाता है
जाने होगी कैसी वो नज़्म जब वो रूह में समा जाएंगी



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