कौन है खुदा या क्या है खुदाई, इसका हमें ज़रा भी इल्म नहीं
आकें काबलियत या दें कज़ा तुम्हें,
इतनी भी कुर्बत हम में नहीं
दावा था तुम्हारा के दानवीर
हो तुम, हमारी
तरह खुदगर्ज़ नहीं
तुमसे मिले सौगात-ए-दर्द को
नकारें, इतने भी बे-गैरत
हम नहीं
बेगुनाही का बोझ है काँधे
पर, मगर आह-ए-गर्दिश
भरते नहीं
इलज़ाम-ए-दगा लगा है वफ़ा पर, मगर सेल-ए-नज़र छलकाते नहीं
तरीक-ए-हयात की राह चल रहे
हैं, मगर हर
कदम आह भर सकते नहीं
मुस्कराहट पर कुर्बान हैं सब अरमां, पलकों पर तेरी अश्क देख सकते नहीं
मिली है सौगात-ए-जिंदगी तुझे
दोबारा, मुहाहिद
हो दगा हम कर सकते नहीं
खुदगर्ज़ होते हम उस वक्त गर, तो तेरे दामन में
शब्-ए-उल्फत आज होती नहीं
तुझे छोड़ तन्हाई को हमसफ़र
बना, सिसक
सिसक अश्कों में फना हम होते नहीं
तेरे हर रोम हर ख़याल से
वाकिफ हैं, पर राज़-ए-हयात हम फाश कभी कर सकते नहीं
दुआ है क़दमों में तेरे न हो
दलदल कभी, पर अपनी यादों
को दफन हम कर पाएंगे नहीं
तेरी लिखी नज़्म-ए-नफ़रत पढ़
कर भी, खुशियों को तेरी कफ़न ओढ़ा कर जाएँगे नहीं
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