Sunday, December 9

आज फिर


एक भूली दास्ताँ, आज फिर याद आ गयी


उनकी कही हर बात, आज फिर याद आ गयी 

उनसे हुई हर मुलाकात, आज फिर याद आ गयी 
उनकी निगाहों की चमक, आज फिर याद आ गयी  
उनके लबों की मुस्कराहट, आज फिर याद आ गयी
उन संग बिताई खुशियाँ, आज फिर याद आ गयी 

एक भूली दास्ताँ, आज फिर याद आ गयी


उनके आगोश की हरारत, आज फिर याद आ गयी

उनकी हर छोटी बड़ी शरारत, आज फिर याद आ गयी 
उनके लबों की नम गर्म छुअन, आज फिर याद आ गयी
उनकी हर दिल-सोज़ अदा, आज फिर याद आ गयी
उन संग बिताई आतिशीन शामें, आज फिर याद आ गयी  

एक भूली दास्ताँ, आज फिर याद आ गयी

उनके वजूद से निकली रूह झुलसाती लू, आज फिर याद आ गयी
उनकी सुर्ख आँखों से टपकती मई की तपन, आज फिर याद आ गयी
उनके दामन से छटकते तडपते दिल की आह, आज फिर याद आ गयी 
उनसे हमेशा के लिए बिछड़ जाने की वो घड़ी, आज फिर याद आ गयी 
उनके साये संग बिताई वो ग़मगीन स्याह रात, आज फिर याद आ गयी 

एक भूली दास्ताँ, आज फिर याद आ गयी...

एक भूली दास्ताँ, आज फिर याद आ गयी!!



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