Saturday, December 8

फना



आशकारा निगाहों से छलकती हसरतें संजो न पाए वो 
झुकी हुई पलकों की इबारत को महसूस कर न पाए वो 
मुतवक्की नज़रों से तकते रहे राह-ए-उल्फत  
आब-ए-चश्म में झलकता, अपने ही अक्स को देख न पाए वो

थरथराते लबों की मुस्कराहट का अर्थ समझ न पाए वो 
आतिशीन रुखसार की तपन को महसूस कर  पाए वो 
दिल-दोज़ आहों की तपिश लबों को सुर्ख कर गई 
महराब-ए-जान पर तराशे, अपने ही नाम को पढ़ न पाए वो 

चलते थमते इन क़दमों की आहट सुन न पाए वो  
आगोश-खुशा बाहों की कसक महसूस कर  पाए वो
रूह-ए-मोहब्बत को तन्हाइयों में भटकता छोड़ 
दायरों में कैद हुए यूँ, अपनी ही रूह की गूँज सुन  पाए वो 

खामोश लफ़्ज़ों में बयाँ नज़्म को ज़हन में समा न पाए वो 
दर्द-ए-दिल की तड़प को महसूस कर  पाए वो 
आब-ए-तल्ख़ के दरिया में डूबते चले गए हम
जुदा हो, खुद को भी फना होने से रोक न पाए वो 





आशकारा = Clear
मुतवक्की = Hopeful
रुखसार = Cheeks







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