उनके पहलू में बीते कुछ ऐसे पल जो इन शेरोन की ज़ुबानी ज़हन में उतरते चले गए... अर्ज़-ए-इनायत हैं वही चंद शेर...
उन्होंने कुछ यूँ फ़रमाया...
मौत तो सिर्फ नाम से बदनाम है,
वरना तकलीफ तो जिंदगी भी देती है...
हमने कुछ यूँ अर्ज़ किया...
मैय्यत सजी है उसी दोराहे पर, बदनामी का सुर्ख कफन ओढ़े
इस आरजू में सांसें अटकी है, के शायद वो रुकेंगे चादर ओढ़ाने
उन्होंने अर्ज़ किया...
वो मुझ पर अजीब असर रखता है,
मेरे अधूरे दिल की हर खबर रखता है,
शायद के हम उसे भूल जाते मगर,
याद आने के वो सारे हुनर रखता है...
हमने कुछ यूँ जवाब दिया...
यादें तो अक्स हैं बीते हुए खुशनुमा लम्हों की
कसक-ए-मोहब्बत है उन संग बीते लम्हों की
पूरे हैं या अधूरे हैं हम, हमें इसका इल्म नहीं
है कदर सिर्फ आप संग बीते जुनूनी लम्हों की
वो कहने लगे...
किसी ने पूछा कैसे हो,
मैंने कहा जी रहा हूँ,
जीने में गम है,
गम में दर्द,
दर्द में मज़ा,
मज़े कर रहा हूँ
हमने कहा...
दर्द-ए-गम को यूँ तनहाइयों में न गुज़ार ए आशिक...
मैखाने में हम भी हैं बैठे अश्कों का छलकता पैमाना लिए...
वो संगीन हो गए और अर्ज़ किया...
तेरे क़दमों की आहट का आज भी बेताबी से इन्तज़ार है...
सांसें चल रही हैं के अब बस तेरे ख़्वाबों का सहारा है...

उनके क़दमों की आहटों का इन्तज़ार न किया कर
आँखें मूंदे ख्यालों का सहारा यूँ न लिया कर
दो कदम बढ़ा दस्तक दे उल्फत के दर पर
आगोश में लेंगे वो तुझे, इतना तो ऐतबार किया कर
उनका जवाब... शब्-ए-उल्फत का एक खूबसूरत पयाम... शब्बखैर!!
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